Monday 31 July 2017

इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी को जानिए



इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी या बौद्धिक सम्पदा का मतलब है आपके दिमाग की रचनाएं... जैसे कि अविष्कार, साहित्यिक रचनाएं, डिज़ाइन्स, सिम्बल्स, विशिष्ट नाम, ग्राफिकल इमेजेस, पेन्टिंग्स आदि जिनके ज़रिए इन्हें बनाने वाले व्यक्ति को मान्यता, पहचान और फाइनेशिंयल फायदा मिलता है।

उदाहरण के तौर पर यदि किसी कवि ने एक कविता लिखी है तो वह कविता उसकी बौद्धिक सम्पत्ति मानी जाती है जिसे कि वो कॉपीराइट के ज़रिए सुरक्षित कर सकता है। अब यदि किसी को वह कविता छापनी है तो उसे कवि की अनुमति लेनी होगी साथ ही उससे कमाई गए पैसों से भी कवि को हिस्सा देना पड़ेगा।

इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टीज़ को पेटेन्ट्स, कॉपीराइट्स, ट्रेडमार्क्स वगैरह के ज़रिए कानूनी तौर पर सुरक्षित किया जाता है। एक बार किसी के नाम पर सुरक्षित हो जाने के बाद दूसरे के द्वारा बिना अनुमति इसका उपयोग गैरकानूनी माना जाता है जिसके लिए सजा का प्रावधान है।

इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी मोटे तौर पर 6 तरह की होती है-

कॉपीराइट प्रॉपर्टीज़ - साहित्य या कला की रचनाएं। जैसे किताबें, म्यूज़िक, पेन्टिंग्स, फिल्म्स, ड्रामा, स्कल्पचर, कम्प्यूटर प्रोग्राम, डेटाबेस वगैरह।

पेटेन्ट प्रॉपर्टीज़- अविष्कार और तकनीक। किसी अविष्कार या तकनीक का पेटेन्ट जिसके नाम होता है वहीं यह निर्णय करता है कि किसी और जगह उस तकनीक या अविष्कार को कैसे और कितना प्रयोग किया जाएगा और उसके बारे में कितनी तकनीकी जानकारी दी जानी है।

ट्रेडमार्क प्रॉपर्टीज़- व्यावसायिक प्रयोग के लिए बनाए गए विशिष्ट प्रतीकों या सिम्बल्स ट्रेडमार्क के अन्तर्गत आते हैं। यह हर उत्पाद या कंपनी के लिए विशिष्ट होते हैं जिन्हें देखकर जाना जा सकता है कि यह उत्पाद किस कम्पनी का है।

जिओग्राफिकल इन्डिकेशन- यह वो साइन्स होते हैं जिनके ज़रिए पता चलता है कि किसी उत्पाद को कहां बनाया गया है या कहां वो नेचुरली प्रोड्यूस होता है। जैसे आसाम टी का जिओग्राफिकल इंडिकेशन होगा असम, भारत।

इंडस्ट्रियल डिज़ाइन प्रॉपर्टीज़- इंडस्ट्रियल डिज़ाइन किसी भी वस्तु के वास्तविक डिज़ाइन या ब्लूप्रिंट को माना जाता है। यह किसी वस्तु की शेप या सतह भी हो सकती है या फ़िर पूरा का पूरा डिज़ाइन भी हो सकता है।

ट्रेड सीक्रेट्स-  यह किसी बिजनिस को चलाने की इन्फॉर्मेशन हो सकती है, किसी उत्पाद को बनाने का फॉर्मूला हो सकता है या फ़िर कोई पैटर्न या प्रैक्टिस जो इन्डस्ट्री स्पेसिफिक हो और जिसकी वजह से उस व्यवसाय को फाइनेशिंयल लाभ मिलता हो। 

क्या बला है यह कम्युनिकेशन..?



आज के युग को हम 'कम्युनिकेशन एज' या फ़िर 'इन्फॉर्मेशन एज' कहते हैं। अब चूंकि हम कम्प्यूटर और सोशल मीडिया के दौर में जी रहे हैं, इसलिए इसे 'साइबर एज' भी कहां जाने लगा है। पर क्यों, क्यों यह कम्युनिकेशन एज हैं? साइबर नेटवर्किंग के ज़रिए आखिर हम कर क्या रहे हैं...? कम्युनिकेशन? तो क्या इसका मतलब एक दूसरे से अपनी बातें या जानकारियां शेयर करना ही है..? मोटे तौर पर हम इसे सही मान सकते हैं लेकिन कम्युनिकेशन का मतलब इससे कहीं ज़्यादा और विस्तृत है। चलिए पहले इसके ओरिजन के बारे में जानते हैं।

अंग्रेज़ी शब्द कम्यूनिकेशन लेटिन के नाउन कम्यूनिस (communis) और लेटिन के ही वर्ब कम्युनिकेअर (communicare) से बना है जिसका मतलब होता है "टू मेक कॉमन" यानि 'आम बनाना'। कम्यूनिकेशन को कम्यूनिटी, कम्यूनियन, कॉमनेलिटी, कम्युनलिज़्म, कम्युनिज़्म जैसे शब्दों से भी जोड़ कर देखा जाता है। हिन्दी भाषा में कम्यूनिकेशन के सबसे करीब जो शब्द है वो है - साधारणीकरण।

आपको जानकर हैरानी होगी कि कम्युनिकेशन को शुरूआती समय में "यातायात के साधन (मीन्स ऑफ ट्रांसपोर्ट) ", और 'ट्रांसमिशन'  से जोड़ कर देखा और समझा जाता था।

कम्युनिकेशन केवल संचार नहीं बल्कि यह एक पूरी प्रक्रिया है जो दो या दो से ज़्यादा लोगों के बीच तब सम्पन्न होती है जब कि वो किसी बात को शेयर करते है या साथ आते हैं। सामाजिक या सांस्कृतिक तौर पर एक दूसरे के साथ आना या जुड़ना भी कम्युनिकेशन है। खुद को जानना, भगवान की भक्ति करना, कहीं जाते समय यूंही सड़क पर किसी को देखकर उसके बारे में अनुमान लगाना, किसी को चिट्ठी लिखना.. वगैरह सब-कुछ कम्युनिकेशन है। वो कोई भी प्रक्रिया जिसके ज़रिए हम खुद से, किसी दूसरे से, किसी समूह से, वातावरण या यहां तक कि अनदेखी शक्तियों से संवाद करते हैं या उनके बारे में जानते हैं, वो सब कम्युनिकेशन के अन्तर्गत आता है।

 कोई कॉन्फ्रेंस, मेला, नाटक, पिक्चर, टीवी, रेडियो, अखबार सभी हमसे कम्युनिकेशन करते हैं, संवाद करते हैं। मनुष्य जीवन में कम्युनिकेशन एक हमेशा चलने वाला प्रॉसेस है। जब हम ख़ाली बैठे होते हैं तो हमारी सोच हमारे साथ संवाद करती है, बाहर अकेले घूमते समय हम जब हम प्रकृति को देखकर खुश महसूस करते हैं वो भी कम्युनिकेशन है। जानवर, पक्षी सभी एक दूसरे से कम्युनिकेशन करते हैं। कम्युनिकेशन को अगर रोक दिया जाए तो इंसान मशीन के जैसे निर्जीव हो जाएगा।

लोगों ने कम्युनिकेशन को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। एक परिभाषा के अनुसार कम्युनिकेशन उन सभी तरीकों का मिलाजुला रूप है जो हम एक दूसरे से या खुद से जुड़ने के लिए इस्तमाल करते हैं। और यह केवल शब्दों में सीमित नहीं है। हां में सिर हिलाना, घूरना, आंखे झुकाना, पैर छूना, ऑब्ज़र्व करना.. आदि सब कम्युनिकेशन में आते हैं।

चिड़ियों का चहचहाना, कुत्ते का भौंकना, गाय का रंभाना .. सबकुछ कम्युनिकेशन का हिस्सा है जिसके ज़रिए वो एक दूसरे या हम तक अपनी बात पहुंचाते हैं। मधुमक्खी के डांस को एडवांस कम्युनिकेशन माना जाता है जिसके ज़रिए वो अन्य मधुमक्खियों को फूलों के रस की दिशा बताती है।

एक इंसान के लिए कम्यूनिकेशन की ज़रूरत उतनी ही है जितनी की खाने, पीने, सोने-जागने की आवश्यकताएं। यह लोगों का मूल अधिकार है जो उन्हें सोशल बनाता है, अन्य लोगों और आसपास के वातावरण से जोड़ता है। मनुष्य में हाव-भावों के ज़रिए दूसरों से जुड़ने के अलावा भाषा भी है जबकि पशु पक्षी इंद्रिय/सेंसरी कम्युनिकेशन के ज़रिए प्रकृति से जुड़ते हैं और खुद को सुरक्षित रखना, खाना खोजना या परिवार बनाने जैसा काम करते हैं। उदाहरण के तौर पर चींटी, मीठे की गंध सूंघकर अपना खाना ढूंढ लेती है, यह सेंसरी कम्युनिकेशन है। सोचिए अगर यह कम्युनिकेशन बंद हो जाए तो चींटी को खाना मुहैया  ही नहीं होगा।

कम्युनिकेशन के कारण ही इंसान सोशल एनिमल है। इसकी आवश्यकता इतनी ज़्यादा है कि अगर किसी इंसान को इससे अलग कर दिया जाए तो यह उसके लिए शॉक की स्थिति होगी। रिसर्च बताती है जिन लोगों को ह्यूमन कम्युनिकेशन से बिल्कुल अलग कर दिया जाता हैं, वो डरावने भ्रम या हैलुसिनेशन का अनुभव करते हैं, उन्हें बुरे सपने आते हैं। जो इन्सान सोशल नहीं होता उसमें दिल की बीमारी होने के चांसेज भी बढ़ जाते हैं। कम्युनिकेशन की अनुपस्थिति शरीर और दिमाग दोनों पर ही बुरा असर डालती है।

कम्युनिकेशन की अलग-अगल परिभाषाएं

डेनिस मेक्वेल कहते हैं - कम्युनिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो कॉमनेलिटी बढ़ाती है, लेकिन इसके शुरू होने के लिए भी कुछ कॉमन चीज़े होनी अनिवार्य हैं। वो इसे लीनियर टर्म कहते हैं जिसमें कि संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। इसमें संदेश देने वाले की अहमियत है लेकिन लेने वाले की नहीं।
(उदाहरण के तौर पर अगर दो लोगों की भाषाएं अलग हैं, एक तमिल बोलता है और एक मलयालम, तो भी कम्युनिकेशन नहीं हो पाएगा। और अगर होगा तो केवल इशारों के ज़रिए। यानि कॉमनेलिटी लाने के लिए कॉमन भाषा या संस्कृति या रुचि ज़रूरी है।)

भारतीय धारणा के अनुसार सह्रदय यानि एक जैसे मन वाले लोगों के बीच साधारणीकरण की क्रिया होती है। इसमें बात करने वाले की भी उतनी ही भूमिका है जितनी कि बात सुनने वाले की। कम्युनिकेशन तभी पूरा माना जाता है जबकि कहने वाले का संदेश सुनने वाला समझ जाए।

एशले मॉन्टाग और फ्लॉयेड मेटसन इसे क्लैश ऑफ सिम्बल्स मानते हैं। कम्युनिकेशन कम्युनिटी की नींव हैं जिसके बिना मनुष्यों का एक दूसरे से जुड़ना असंभव है।

डब्ल्यू एस कॉर्डन जो कि काइनेसिस (बॉडी लेंग्वेज सांइस) के विशेषज्ञ हैं, का कहना है कि कम्युनिकेशन के लिए भाषा से भी ज़्यादा ज़रूरी वो संस्कृति विशेष प्रतीक हैं जो एक बच्चा पैदा होते ही देखना और सीखना शुरू कर देता है औऱ जो उसे उसकी कम्युनिटी या संस्कृति का हिस्सा बनाता है। जैसे उत्तर भारत के बच्चे बड़ो के पैर छूते हैं, जैसे ही वो किसी और को ऐसा करते देखते हैं तो उससे उनका मानसिक जुड़ाव हो जाता है जो कम्युनिकेशन के लिए ग्राउंड तैयार करता है।

समाजशास्त्री थॉम्पसन को एक ऐसे एक्शन के तौर पर देखते हैं जिसका सामाजिक संदर्भ है और जो समाज में आर्थिक, राजनीतिक या ज्ञान की ताकत से सम्बन्धित है। उदाहरण के तौर समान आर्थिक स्थिति वाले लोग आपस में जुड़ना और बात करना पसंद करते हैं।

आजकल सोशल मीडिया के दौर में एक नए तरह का कम्युनिकेशन हो रहा है जिसमें एक दूसरे से जुड़ने के लिए कॉमन जगह पर होना ज़रूरी नहीं। लोग स्टेटस, फोटो वगैरह के ज़रिए नई तरह की पावर (थिंकिंग पावर या अपनी अमीरी दिखाना आदि) का प्रदर्शन करते हैं। फॉलोअर्स के रूप में उनका सोशल स्टेटस बढ़ता है और लोग इस तरह के कम्युनिकेशन को काफी पसंद करते हैं।




  

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